Saturday, 13 December 2014

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फरमान नंबर 6 किस्मत की गांठों से ही ग्रह मंडल बन गया धर्म दया ख्वाह कोसो ऊँची, ख्वाह ही सखी लख दाता हो
उलटे वक्त खुद गाँठ आ लगती, लेख लिखता था विधाता जो
दुनिया के प्रारम्भ और ब्रह्माण्ड के खाली आकाश में (जो बुध का आकार है) सबसे पहले अँधेरा (शनि का सम्राज्य) मानकर इसमें रौशनी (सूरज की किरणों की चमक) का प्रवेश ख्याल किया गया इस रौशनी (सूरज) और अँधेरे (शनि) दोनों के साथ-साथ हवा (जो दोनों तो दो जहानों के मालिक बृहस्पति की राजधानी है) चल रही है, यानि हवा अँधेरे में भी होती है और रौशनी में भी हुआ करती है |

मसलन शीशे का बक्स (डिब्बा) हो तो उसके अंदर खाली जगह में भी हवा होगी और उस बक्स के बाहर भी हवा महसूस होगी | गोया बुध का शीशा अँधेरे और रौशनी दोनों को ही अंदर से बाहर और बाहर से अंदर जाहिर होने की इजाजत देगा मगर वह (बुध या शीशा) हवा को बाहर से अंदर या अंदर से बाहर जाने न देगा यही चक्र में डाले रखने की दुश्मनी बृहस्पति से बुध को होगी या बुध के आकाश की खाली जगह में किस्मत को जाहिर (स्पष्ट) करने वाला ग्रह चाली


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