Thursday, 11 December 2014

lal kitab page no 235


बृहस्पत (विधाता-जगतगुरु-ब्रहमा जी महाराज) (१) दो रंगी दुनिया, के रंग दोनों देखो (२) मगर आँख दुःख जाये, अपनी न देखो 1. दो रंगी दुनिया एक मूंछ काली तो दूसरी सफेद।

2. दर्द आँख, मकानों, मशीनों की खराबियाँ, शत्रु या सांप की मंदी घटनाएं धोखा, मुसीबत के की बीमारियाँ आदि।

मनुष्य की मुट्ठी के अंदर खाली खुलाओं में बंद या आकाश में फैले रहने, हर दो जहान में जा आ सकने और सारे ब्रह्माण्ड तथा मनुष्य के अंदर-बाहर चक्कर लगाने वाली हवा को ग्रह मंडल में बृहस्पति के नाम से याद किया गया है, जो बंद हालत में कुदरत के साथ लाई हुई, क़िस्मत का भेद और खुल जाने पर अपने जन्म से पहले भेजे हुए खजाने का राज़ और बंद और खुली हर दो हालत की दरमियानी हद इन्सान शरीफ़ के शुरू (जन्म लेने) व आख़िर (वफ़ात पाने अथवा मृत्यु) का बहाना होगी |

बृहस्पति ग्रहों का गुरु और ज़ाहिरा ग़ैबी दोनों जहाँ का स्वामी माना गया है, इसलिए एक ही घर में बैठ हुए बृहस्पति का असर बेशक मानिन्द राजा या फकीर, सोना या पीतल, सोने की बनी लंका तक दान कर देने वाला प्राणी या सारे ज़माने का चोर, साधु जिसका धर्म ईमान न हो, हर दो हालत में से, चाहे किसी भी ढंग का हो, मगर उसका

(1) बुरा असर शुरु होने की निशानी हमेशां शनीच्चर के मंदे असर का ज़रिए होगी और

(2) नेक असर खुद बृहस्पत के ग्रह की संबंधित चीजें या कारोबार या रिश्तेदार मुताल्लिका बृहस्पत (फेहरिस्त जुदी जगह) के ज़रिये ज़ाहिर होगा


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